Friday, October 19, 2018

अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग संबंधित ऐतिहासिक प्राचीन जानकारी मोहगांव हवेली जिला छिन्दवाडा (म0प्र0)







अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग संबंधित ऐतिहासिक प्राचीन जानकारी
मोहगांव हवेली जिला छिन्दवाडा (0प्र0)

 मन को मोहकर सकल कामनाओं की सिद्धि पूर्ति का स्थल मोहगांव का अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग है। यह तीर्थ स्थल सनातन पुरातन काल से सर्पिणी  नदी जो सतपुड़ा पर्वत माला की प्रथम सीढ़ी पर स्थित औदुंबर वृक्ष की जड़ से उद्गमित होकर ओमकार में सर्पाकृति प्रवाहमान हो रही सर्पिणी तट पर स्थित है, यह ज्योतिर्लिंग जिसका प्राचीन नाम महदगावं था।
पौराणिक आधार यह है कि यह क्षेत्र दण्डकारण्य कहलाता है, जो कि दैत्य गुरू शुक्राचार्य की कर्मभूमि है। दैत्य गुरू शुक्राचार्य भगवान भोलेनाथ के अनन्य भक्त थे, उन्होंने सर्पिणी नदी तट पर तपस्या की थी, वह स्थान मंदिर परिसर है। शुक्राचार्य की तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुये, तब शुक्राचार्य ने भगवान से कहा मैं केवल माताजी को आपके साथ देखना चाहता हूॅं, तब भगवान ने अर्धनारीनटेश्वर रूप उन्हें दिखाया। उसी दिन से यहाॅं अर्धनारीश्वर भगवान ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुये।



     
 उसके पश्चात अनन्य भक्तों द्वारा यहाॅं तप किया गया, जिसमें अन्याजी महाराज, मुकंद महाराज एवं तीन महात्माओं की जीवंत समाधियाॅं स्थापित है।
यह स्थल चार धाम (बद्री, केदार, द्वाराका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर) बारह ज्योतिर्लिंग तथा त्रिपुर सुंदरी के केन्द्र बिन्दु पर स्थित है।
सनातन पुरातन काल से इस ज्योतिर्लिंग मंदिर से निर्माण संरचना एवं वास्तुकला महामृत्युंजय यंत्र आधारित होने से यह शक्तिपीठ कहलाता है।
शिव एवं शक्ति के अर्ध स्वरूप अनंत कोटी ब्रम्हाण्ड नायक परमात्मा अर्धनारीश्वर की पूजा प्रतीक ज्योतिर्लिंग जिसमें शक्तिपिण्डी का स्थान गहरा काला रंग लिये एवं शिव का स्थान ज्योति स्वरूप लिंग का स्थान अग्नि जैसा दृश्यमान होने से यह शक्तिपीठ कहलाता है। इस प्रकार शिव एवं शक्ति का आधा-आधा स्थान होने से अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग है।
प्रथम एवं द्वितीय प्रदक्षिणा पथ के बीच के बारह द्वारा, बारह ज्यातिर्लिंग का तथा द्वितीय एवं तृतीय प्रदक्षिण पथ के बीच चार द्वारा चार धाम के प्रतीक है। इसी के साथ बारह ज्योतिर्लिंग परिसर में विद्यमान है।
इसकी प्रदक्षिणा से बारह ज्योतिर्लिंग एवं चार धाम की यात्रा का पूण्य फल प्राप्त होता है। सर्पिणी नदी नाम होने के कारण इस स्थल पर कालसर्प योग दोष शांति विधान में शीघ्र फल प्राप्ति होती है। विश्व में एकमात्र मंदिर में ज्योतिर्लिंग पर सूर्य किरणों का प्राकृतिक दिव्य दृश्य कार्तिक पूर्णिमा एवं महाशिवरात्री के अवसर पर दृश्यमान होता है। श्रावण मास में कावड़ यात्री भारत की नदियों का जल लेकर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करते है।
महाशिवरात्री महोत्सव विगत 64 वर्षों से लगातार राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज द्वारा प्रारंभ की गई व्यवस्था का प्रतीक है। महारूद्र अवसर 2005 में जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी यज्ञ में पधारे थे। सनातन पुरातन काल से शिव एवं शक्ति के उपासक संस्कृति पुरूष श्री राम, श्री कृष्ण, महाराजा रावण, सम्राट श्री विक्रमादित्य, श्रीमंत आद्यशंकराचार्य, श्री महाराणा प्रताप, श्री छत्रपति शिवाजी महाराज, श्री गुरू गोविंद सिंह आदि सभी दिव्य पुरूष शिव एवं शक्ति की भक्ति के उपासक रहे है।
तेरहवी शताब्दी एवं पंद्रहवी शताब्दी के बीच मंदिर का जीर्णोधार देवगढ़ के गोंड राजा एवं नागपुर के भोसले राजा द्वारा किया था।
यह अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग मोहगांव हवेली ग्राम में छिन्दवाडा जिले के सौंसर तहसील में सौंसर नगर से मात्र 6 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। नागपुर महराष्ट्र से इसकी दूरी 80 किलोमीटर है। यह ज्योतिर्लिंग भोपाल-नागपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पांढुरना से मोरडोंगरी, पंधराखेडी होते हुये मोहगांव हवेली 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।